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मप्र में छाए हुए हैं डॉन….डकैत…खान….बॉस…!

(कीर्ति राणा)

निज़ाम बदला, मिजाज बदल गए और राजनीतिक हवा भी बदल गई लेकिन इस बदली हवा के झोंके को अभी तक भी कई लोग या तो महसूस नहीं कर पाए हैं या जानबूझकर अंजान बने हुए हैं।कब, क्या, कहां, कैसे बोलना है यह ध्यान नहीं रखने का ही परिणाम रहता है कि बेमतलब किरकिरी हो जाती है। जुबान तो वाणी वर्षा कर 32 दाँतों के बीच छुप कर बैठ जाती है और गोली जैसी शब्दों की बोली का दंड भुगतना पड़ता है व्यक्ति को। यही कारण है कि विद्यालय से लेकर विधानसभा और विधानसभा से लेकर वल्लभ भवन तक कहीं ‘डकैत’ कहीं ‘डॉन’ कहीं ‘बॉस’ तो कहीं माय नेम इज खान छाए हुए हैं।
हेडमास्टर जैसे ज़िम्मेदार पद पर बैठे बुनियादी शिक्षा मिडिल स्कूल जबलपुर के मनोज तिवारी किसी कार्यक्रम में अपनी जुबान पर काबू नहीं रख पाए। मुकेश तिवारी ने मुख्यमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक शब्द बोलते हुए ‘शिवराज सिंह चौहान को हमारे हैं जबकि कमलनाथ एक डाकू हैं’ कह डाला। उनकी इस स्पीच का वीडियो भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। जबलपुर कलेक्टर छवि भारद्वाज ने इस वीडियो की प्रारंभिक जाँच के आधार पर हेडमास्टर के निलंबन आदेश जारी करने के साथ ही जिला शिक्षा कार्यालय में अटैच कर दिया है।लगता नहीं कि भाजपा बोलने की आजादी पर रोक का हवाला देते हुए इस मामले को इशु बनाएगी, बनाना भी नहीं चाहिए बोलने की आजादी का मतलब यह नहीं कि किसी को अपमानित किया जाए, शिवराज की प्रशंसा से कमलनाथ को भी ऐतराज़ नहीं होगा लेकिन कमलनाथ को डकैत साबित करते हुए शिव आराधना की जाए तो कांग्रेसजनों का गुस्सा गलत नहीं कहा जा सकता।

वाणी संयम की अपेक्षा शिक्षक से तो की ही जानी चाहिए क्योंकि माँ के बाद शिक्षक ही हैं जो हमें सिखाते हैं कब, क्या बोलें।विद्यालयों में ये संस्कार नहीं मिले होते तो हम भी फेसबुक, व्हाट्सएप पर निधन की सूचना वाले मैसेज पर ‘लाइक’ और मुस्कुराते इमोजी पोस्ट करने की गलती करते रहते। गलती तो मप्र में सर्वाधिक समय मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह ने भी की है वह भी विधानसभा सत्र के दौरान। उस सदन में जिसे पंद्रह वर्षों तक मनमानी से चलाने का आरोप कांग्रेस लगाती रही है। अब कांग्रेस सत्ता में है, भाजपा विपक्ष में और शिवराज भूतपूर्व हो गए हैं यह सच मामाजी पचा ही नहीं पा रहे हैं।पहली बार जीता कोई विधायक स्पीकर को अपशब्द कहे तो वह नौसिखिया माना जा सकता है लेकिन शिवराज जैसा धीर-गंभीर-परिपक्व राजनेता ही यदि स्पीकर को ‘डॉन’ कहे तो विशेषाधिकार समिति से उनके खिलाफ शिकायत तो होगी ही। कांग्रेस के विक्रम सिंह, बसपा के संजीव कुशवाह और सपा के राजेश शुक्ला ने स्पीकर से शिकायत करते हुए कहा है कि विधान सभा स्पीकर को ‘डॉन’ कहना विशेषाधिकार का हनन है। ऐसे में शिवराज के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। विधानसभा में उपाध्यक्ष पद को लेकर हंगामे के दौरान शिवराज सिंह चौहान ने पाइंट ऑफ ऑर्डर उठाने की अनुमति नहीं देने पर तीखी आपत्ति दर्ज कराते हुए यह तक कह डाला था कि ‘आपका व्यवहार अध्यक्ष का व्यवहार नहीं है। आप ‘डॉन’ की तरह व्यवहार कर रहे हैं। आप तो धमकी दे रहे हैं. यह नहीं चलेगा।’

बदले हुए निज़ाम और बदले हुए मुख्य सचिव की वर्किंग स्टाइल से अनभिज्ञ अधिकारी जब विभागीय बैठकों में पूरी तैयारी से नहीं पहुँचें तो विभाग प्रमुख उनकी पीठ थपथपाने से तो रहे। मंत्रालय में पीएचई की समय सीमा बैठक थी। इसमें विवेक अग्रवाल के साथ विभाग के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। इस दौरान पीएस ने उप सचिव नियाज़ अहमद से एक जानकारी को लेकर जवाब तलब किया। अहमद का जवाब था विभागाध्यक्ष से जानकारी मांगी थी, लेकिन नहीं मिली। इस पर अग्रवाल ने पूछा जानकारी कैसे मांगी, जवाब मिला कि फोन पर बात की थी। इसे लेकर दोनों के बीच गर्मागर्म बहस हुई और अग्रवाल ने अहमद को ‘गेट आउट’ कहते हुए बैठक से बाहर जाने के लिए कह दिया। इसके बाद अहमद उठे और बैठक छोड़कर चले गए।अब खान को वो सारे कटु प्रसंग याद आ रहे हैं कि उनके नाम के साथ खान जुड़ा होने के कारण वर्षों से कैसा दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है।

खान के इन आरोपों से निश्चित ही अल्पसंख्यक समाज को हमदर्दी हो सकती है, सरकार को भी संवेदनशील-लेखक नियाज़ अहमद के इन गंभीर आरोपों की जाँच कराना चाहिए। जब इन आरोपों की जाँच होगी तो यह सच भी सामने आएगा कि समयसीमा बैठक में आवश्यक जानकारी जुटाकर क्यों नहीं पहुँच सके अहमद।क्षिप्रा में पर्व स्नान पर पर्याप्त पानी का इंतजाम नहीं कर पाने वाले कलेक्टर, कमिश्नर को एक झटके में हटाया जा सकता है तो उप सचिव को तो पहले ही समझ आ जाना था कि नए मुख्य सचिव काम चाहते हैं बहानेबाज़ी नहीं। बहाने तो उज्जैन कलेक्टर-कमिश्नर ने भी बनाए होंगे, गलती के लिए एनवीडीए को भी दोषी ठहराया लेकिन पहली गाज गिरी उन पर जो सीधे ज़िम्मेदार थे।सीएस मोहंती पीएस, एसीएस को गेटआउट नहीं करें इस खौफ से बचने के लिए अब भी ज़िम्मेदारी न समझने वाले मातहत को हर बड़ा अधिकारी गेटआउट ही करेगा।

अब बात कर लें ‘बॉस’ की, ये बॉस हैं भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के। कैलाश विजयवर्गीय कह रहे हैं कि जिस दिन बॉस का इशारा हो जाये,5 दिन में सरकार गिरा देंगे।पता नहीं इशारा करने वाले ये बॉस कौन से हैं। मप्र विधानसभा अध्यक्ष चुनाव में भाजपा का प्रत्याशी खड़ा करने और उसे जितवाने के आदेश के साथ पार्टी के बॉस अमित शाह ने उन्हें ही कमान सौंपी थी। केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, मप्र प्रभारी सहस्त्रबुद्धे भी आए थे। विजय शाह को प्रत्याशी भी घोषित किया लेकिन बॉस शाह तो विजय से दूर ही रहे, अच्छा भला जो उपाध्यक्ष का पद समझौते में मिल रहा था वहां भी हीना कांवरे की जीत पक्की कर कांग्रेस ने बता दिया कि पंद्रह साल सत्ता से दूर रहने के दर्द के साथ ही ठोंकरे खाते हुए उसने अनुभव भी खूब लिया है।

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